संस्थापक

हम्हारे दादाजी  स्वर्गीय श्री नारायण लाल शर्मा नेवटे  वाले
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पिताश्री स्वर्गीय श्री रवि शंकर जी शर्मा

 

महंत श्री दीपक शर्मा
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गणेश लक्ष्मी मंदिर एक परिचय

श्री श्री १००८ कुलदेवी भगवती माता जी मन्दिर (इष्टदेवी) एवं श्री अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता गणेश लक्ष्मी मन्दिर सार्वजनिक सेवा समिति(रजि.) जयपुर,
🌹🌹संस्थापक…. स्व. पं.श्री नारायण लाल जी शर्मा (नेवटे वाले) सुपुत्र
स्व.पं.श्री रविशंकर जी शर्मा (नेवटे वाले)🌹🌹
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महंत… पं. दीपक शर्मा (नेवटे वाले) जयपुर,
श्रीमती अन्नु शर्मा……
मेरे प्रिय मान्यवर…
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन करते हैं। जय श्री गणेश…..

गणेश लक्ष्मी मन्दिर कब ओर कैसे बनाया गया है

इस मन्दिर को बनाने कि इच्छा हमारे पुजनीय.. दादा जी की थी।
प्राचीन समय की बात है हमारे दादा जी दुर्गा पाठी व सर्व सिद्धि पुरुष थे और उनके काफी शिष्य (चेले) थे उन्होंने अपने जीवन में काफी चमत्कार दिखाए ओर काफी शिष्यों के समस्याओं का समाधान भी किया   ऐसै बताया जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में माता कुलदेवी भगवती का चक्र चलता हुआ दिखाया है और यह भी बताया गया है कि वह माता कुलदेवी भगवती से साक्षात बातचीत किया करते थे पर उन्होंने कभी कोई चीज का मोह नही रखा ना कभी घमण्ड किया और उनके काफी शिष्य थे ओर लोगों के मन में एक भक्ति का दीप जलाया लोगों के दिलों में एक प्रेम की जगह बनाई है। और उनके हाथ से लिखे हुए भजन भी है   उन्होंने अपने जीवन में भजनमाला इतने बनाए की मानो कोई कमी नहीं भजनो कि पहली किताब…सौभाग्य दायिनी…दूसरी किताब…सौभाग्य चन्र्दिका ..एवं नारायण भजन माला…और तीसरी किताब अब प्रकाशित की जाएगी जिसका नाम है…श्री मन्नारायण मोहिनी मंत्र…
और यहाँ तक भी उन्होंने कहीं जगह जगह मन्दिर भी बनवाए उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी किए १,गंग गणेश मन्दिर,२,चमत्कारेशवर महादेव मन्दिर ,३ कोठी लबालब अमरेशवर महादेव मंदिर आदि…. फिर कुछ समय बीतने के बाद उनके पास एक शिष्य आया ओर उसने कहा कि गुरुजी आप मुझे गणेश जी की ऐसी तस्वीर बना के दो  जो पुरे जयपुर में कहीं भी ना बनी हो अनोखी तस्वीर हो वो ओर उसका नाम भी अलग ही हो  कुछ समय बाद गुरुजी ने अपने माता कुलदेवी भगवती का ध्यान लगाया ओर ध्यान लगाने के बाद उन्हें जो अद्भुत गणेश जी के दर्शन हुए ओर वैसे की वैसे वह तस्वीर बना दिए उस गणेश जी का नाम निकाला….श्री अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता गणेश जी महाराज….. फिर उसके बाद में वो शिष्य वो तस्वीर लेने नहीं आ पाया क्योंकि वह शिष्य भगवान के चरणों में समर्पित हो गए थे। बताया जाता है कि उसकी उम्र कोई ६०-७०के आस पास थी। और कुछ समय बीतने के बाद दादा जी ने उस तस्वीर को माता कुलदेवी भगवती पास रख दिया ओर उनका ध्यान लगाया कहाँ कि मैं जहाँ भी नया स्थान लूँगा वहां मे पहले गणेश जी को स्थापित करूँगा। यह मेरी इच्छा है, उन्होंने यह इच्छा गुप्त रखी थी। (इष्टदेवी के सामने), समय बीतता गया फिर उन्होंने अपने बेटे ओर बहू को दोनो साथ बुलाया और उन्होंने अपने बेटे ओर बहू को कहाँ की में अब कुछ समय बाद तुम सबको छोड़कर चला जाऊँगा और जाते जाते में अपने पौते का जनेउ संस्कार कराना चाहता हूँ ओर यह जो गणेश जी की तस्वीर हैं एेसा एक मन्दिर बनाना चाहता हूँ फिर कुछ समय बाद १,मार्च,२००० को उन्होंने अपने हाथों से अपने पौते का जनैउ संस्कार कराया। और एक वर्ष बाद वह भी भगवान के चरणों में समर्पित हो गए।

फिर उनके चले जाने के बाद कुछ समय बाद उनके बेटे स्व.पं. श्री रविशंकर जी शर्मा ओर धर्मपत्नी श्रीमती अन्नु शर्मा दोनो ने मिलकर यह विचार किया की अब बच्चे बड़े हो गए हैं तो एक नया मकान लिया जाए। इन दोनों ने मिलकर खूब मेहनत की पर उन्हें कही पर भी नया मकान नहीं मिला। कुछ परिचित लोगों से संपर्क करें मकान के लिए पर फिर भी नया मकान नहीं मिला। जब वह परेशान होने लगे। तब उन दोनो ने मिलकर माता कुलदेवी भगवती (ईष्टदेवी) आराधना की खूब पूजा-पाठ की  आराधना करते करते कहीं दिन निकल गए। फिर उन्हें ईष्टदेवी के दर्शन हुए ओर दर्शन होने के बाद में उन्हें पश्चिम दिशा में एक नया मकान प्राप्त हुआ। कुछ समय बाद दोनो ने मिलकर उस मकान का मुहूर्त किया ओर वह पुरा परिवार साथ रहने लगा। और अपनी ईष्टदेवी को भी साथ वहां पर विराजमान किया कुछ समय बाद वह दोनो पति पत्नी परेशान रहने लगे। ( गुप्त बात ) जब ज्यादा परेशान होने लगे तो दोनो ने मिलकर ईष्टदेवी पूजा की और कुछ समय निकलने के बाद उन दोनो तस्वीर की याद आई। उन्हें वो तस्वीर याद आने के बाद उन दोनो को भी भगवान गणेश जी के दर्शन हुए ओर उन्होंने कहा कि मेरे रहने की जगह कहाँ है में कहाँ रहूँगा  तब जाकर उन दोनो पति पत्नी मिलकर ५,सितम्बर,२००५..गणेश चतुर्थी को स्थापित किया ओर उन गणेश जी का नाम निकाला….श्री अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता गणेश जी महाराज ओर गणेश जी स्थापित करने के बाद स्व.पं. श्री नारायण लाल जी शर्मा की एवं उनके बेटे ओर बहू की दोनो के जीवन साकार हुआ। फिर कुछ समय बाद स्व.पं रविशंकर शर्मा जी भी भगवान के चरणों में समर्पित हो गए। और उनक चले जाने के बाद उनके बेटे महंत पं दीपक शर्मा जी ने अपने पूरे परिवार को ओर मन्दिर को संभाला और ………..
जय श्री गणेश आप सभी भक्तों में बता दूँ कि मेरी उम्र २२ साल है आज वर्तमान में ओर हमारे दादाजी व पापा भगवान के चरणों में समर्पित हो जाने के  बाद म मैं उनकी गद्दी पर बैठा ओर ५-६ वर्ष की उम्र से मे भगवान की पूजा पाठ व भक्ति करता आया हु  मेरे दादा जी ने मुझे पूजा पाठ करना व भजन गाना सिखाया है मैं आज जो भी हूँ सब दादा जी के आशीर्वाद से हूँ। फिर हमारे  दादा जी की इच्छा हमारे पापा मम्मी ने पूरी कर दी थी और मेरी इच्छा थी कि अपने इस मन्दिर का नाम और इसकी महिमा जन जन तक पहुँचाउ